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जीवन परिचय

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आर. वेंकटरमण भारतीय गणराज्य के आठवें राष्ट्रपति है। इससे पहले वह उपराष्ट्रपति भी रह चुके है। अपने कार्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति बेहद संजीदा रहने वाले वेंकटरमण एक कुशल और परिपक्व राजनेता ही नहीं बल्कि बेहद सुलझे हुए और अच्छे इंसान भी थे। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए इन्हें ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया था। देश के ऐसे सच्चे कर्मठशील सपूत को भारत माता कभी नहीं भूल सकती।


आर. वेंकटरमण


रामस्वामी वेंकटरमण का जन्म 4 दिसंबर, 1910 को तमिलनाडु में तंजौर के पास पट्टुकोट्टय में हुआ था। पिता का नाम रामास्वामी अय्यर था और वें तंजौर जिले में एक वकील थे। वेंकटरमण की प्राथमिक शिक्षा मद्रास में हुई। मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानून की परीक्षा के लिए उन्होंने मद्रास के डी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद उनके सामने दो विकल्प थे – ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी करें या तो वे स्वतंत्र रूप से वकालत करें। उन्हें अंग्रेजो के अधीन काम करना मंजूर नहीं था इसलिए स्वतंत्र रूप से वकालत करने की ठान ली। 1935 में मद्रास उच्च न्यायालय से वकालत शुरू कर दी। 1951 तक वे कानून के प्रकांड पंडित के रूप में पहचाने जाने लगे। फिर वकील के रूप में अपना कार्य आरंभ कर दिया।

वकालत के दौरान वेंकटरमण ने 1942 में भारत की स्वतंत्रता के लिए गाँधी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया। अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरिफ्तार कर लिया और दो वर्ष कारावास की सजा हुई। 1944 में अपनी रिहाई के बाद वे फिर से अंग्रेजो के विरुद्ध आन्दोलनों से जुड़ गए। देश के प्रति उनका स्नेह अपार था। 1944 में ही उन्होंने तमिलनाडु कांग्रेस समिति में श्रमिक प्रभाव का गठन किया और प्रभारी के रूप में कार्यभार संभाला। थोड़े समय बाद ही वे “ट्रेड यूनियन लीडर” के रूप में स्थापित हो गए। श्रमिक एवं मजदूरों के लिए वे हमेशा काम करते थे। उनकी समस्याओं को दूर करना ही वेंकटरमण की प्राथमिकता होती थी। वे आपसी बातचीत एवं तालमेल से समस्या दूर करते थे। कोई और विकल्प न होने पर ही वे कानून का सहारा लेते थे और मजदूरों के हितों के लिए लड़ते थे। 1949 में उन्होंने ‘श्रमिक कानून’ पत्रिका शुरू की।

स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् वकालत में उनकी श्रेष्ठता एवं ज्ञान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के उत्कृष्ट वकीलों की टीम में स्थान दिया। 1947 से 1950 तक वे ‘महाराष्ट्र बार एसोसिएशन’ के सचिव रहे। राजनीती में आते ही उन्हें 1950 में स्वतंत्र भारत की अस्थाई संसद का सदस्य बना दिया गया। 1952 में जब देश की प्रथम संसद का गठन हुआ उस समय भी उन्हें उसका सदस्य बनाया गया। 1957 तक वे इसके सदस्य रहे। 1953 से 1954 तक उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सचिव के रूप में कार्यभार संभाला।

1957 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर वेंकटरमण सांसद के रूप में चुने गए। पद की लालसा न दिखाते हुए उन्होंने इस पद को त्याग दिया और मद्रास राज्य के मंत्रीपरिषद का पद ग्रहण किया। तब वहां के मुख्यमंत्री के. कामराज ने उनकी राजनैतिक प्रतिभा को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1957 से 1967 तक वेंकटरमण ने मद्रास राज्य में सहकारिता, वाणिज्यिक कर, श्रम, उद्योग, यातायात और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण कार्यो को सफलतापूर्वक संभाला।

1967 में तमिलनाडु में सत्ता कांग्रेस के हाथों से चली गई। उसके बाद वेंकटरमण दिल्ली आ गए। उन्हें योजना आयोग का सदस्य चुन लिया गया। इस दौरान वे उद्योगों, समाज, यातायात, अर्थव्यस्था से जुड़े कार्य संभालते रहे। 1971 तक उन्होंने इस पद की गरिमा बढाई। 1980 में वे पुनः लोकसभा चुनाव जीते और सांसद बन गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उन्हें वित्त मंत्री बना दिया। 1982 से 1984 तक रक्षा मंत्री का भार सौंपा गया। 22 अगस्त 1984 में उपराष्ट्रपति का कार्य संभाला। उसी दौरान राज्यसभा के अध्यक्ष भी रहे। 24 जुलाई 1987 को उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे दिया। 25 जुलाई 1987 को आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

98 वर्ष की आयु में 27 जनवरी, 2009 को एक लंबी बीमारी के चलते दिल्ली के आर्मी अस्पताल में उनका निधन हो गया।


1 टिप्पणियाँ:

SHIVAM DHURVE ने कहा…

7972503767 mujhe sampark kare