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जीवन परिचय

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खगोल सागर



महामति प्राणनाथ, मध्ययुगीन भारत के अंतिम संत-कवि थे। उन्होंने अपना समस्त जीवन धार्मिक एकता के लिए समर्पित किया था। इसके लिए प्रणामी नामक एक नए पंथ की स्थापना की जिसमे सभी धर्म के लोग सम्मिलित हुए। उनकी वाणी का सार 'तारतम सागर' ग्रंथ में संकलित है जिसमे सभी धर्मों के दिव्य ज्ञान का निचोड़ प्रस्तुत किया गया है। अब यह प्रणामी संप्रदाय का प्रमुख और पवित्रतम ग्रंथ है। 






महामति प्राणनाथ का जन्म 6 अक्टूबर, 1618 को जामनगर, गुजरात में हुआ। उनका असली नाम मेहराज ठाकुर था। वह जामनगर के दीवान केशव ठाकुर की पांच संतानों में से एक थे।  उनकी माता धन बाई एक धर्मनिष्ठ महिला थी। उनके परिजन वैष्णव संप्रदाय से संबंधित थे। बाल्यकाल से ही प्राणनाथ का झुकाव धार्मिक प्रवृत्ति की ओर था। स्वामी देवचन्द्र के रूप में उन्होंने अपनी पसंद का गुरु पाया।

1678 में,  कुंभ मेले में भाग लेने वह हरिद्वार आए। यहां अन्य धार्मिक संप्रदायों के प्रमुखों से भेंट कर उनमें से हर एक के साथ विस्तृत विचार विमर्श किया। मेले के समापन पर उन्हें सर्वसम्मति से विजयाभिनन्दन निष्कलंक बुद्धजी के खिताब से सम्मानित किया गया।

महाराजा छत्रसाल प्राणनाथ के समर्पित शिष्य थे। छत्रसाल बुंदेलखंड में औरंगजेब के अत्याचारी शासन के खिलाफ लड़ना चाहते थे। लेकिन उनके पास सेना व शस्त्रागार के निर्माण के लिए धन नहीं था। उन्होंने प्राणनाथ से सहायता मांगी। प्राणनाथ ने छत्रसाल को आशीर्वाद दिया और कहा -'' घोड़े पर सवार होकर कल सुबह तुम जितनी भूमि का फेरा लगाओगे वह हीरे से भरी होगी।







8 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

कृपया मुझे जानकारी थे । मुझे यह लेख ठीक करना है । आप करेंगे या मैं कर सकता हूँ ? अपना contact send करे

Unknown ने कहा…

कृपया मुझे जानकारी थे । मुझे यह लेख ठीक करना है । आप करेंगे या मैं कर सकता हूँ ? अपना contact send करे

अशोक मनवाणी ने कहा…

इनकी सिंधी वाणी पर भोपाल के लेखक झम्मू छुगाणी जी ने रिसर्च की है।

Unknown ने कहा…

ashok manvani ji, i am belong from shri Prannath mission, which promote academic research. please give us other details and contect detail of writter jhammu chhugani. my mail mohanpranami@gmail.com
thank you

Unknown ने कहा…

क्या मिला रिसर्च में

deepali ने कहा…

सन्त कवि प्राणनाथ जी ने सिंधी भाषा में भी बहुत दोहे वगैरह लिखे हैं... मेरी बुक में मैंने भी उनके लिखा है।

Unknown ने कहा…

हिंदू धर्म की रक्षा के लिए जिस प्रकार गुरु नानकदेव जी ने शस्त्र और शास्त्र से हिंदुओं के प्रति औरंगजेब की आक्रामकता को परास्त किया इसी प्रकार से श्री प्राणनाथ जी ने पहले शास्त्रों से और फिर वीर बुंदेला महाराजा छत्रसाल जी को खड़ा करके शस्त्र से धर्मयुद्ध किया। श्री प्राणनाथ जी के इस धर्मयुद्ध को गहराई से समझना होगा।

Myth Buster ने कहा…

Bhai agar History ka kuch gyaan nahin hai aapko toh kuch bhi mat likha Karo Mr. Unknown ji. Guru Nanak Dev Ji ka janam 1469 mai hua tha. aur Unhone kabhi Hathiyar nahin uthaye apne, aur Uss Nirlaj, ghatiya suar jisko Aurangjeb kehte Hain uss ghatiya ka ghatiya shasan kal 1658 se 1707 tak tha, aur sirf shashan isliye likha hai kyunki ye sirf unn kuch logon pe hua tha jo maansik roop se Khud ko isska gulaam mante thae otherwise ye itni sab ladai hamesha se hoti rahi thi, logon ne maut sweekarr lekin Dharam parivartan nahin. aise veer yodhaon ko aur jinhone SANATAN HINDU DHARMA KO SARVOPARI MAANA AUR APNI JAAN HANSTE HUE DI. Unko koi kam akal ka he Gulam keh sakta hai ya jo bilkul pagal ho. otherwise Bharat ke logon kabhi mansik aur sharirik roop se inn lutere chor mughlon aur baaki neech jo bahar se aur ye Europeaans jo aaye hamesha he bhartiyon ne innke against pratikar aur ladaiyaan he ki hain. toh GULAAM KYUN KEHTE HO APNE ANSCTERA KO AUR INN SAB LUTRRON KO SHAASAK KYUN KEHTE HO. UNKE DIYE BALIDON PE KAALIKH MAT POCHHO, ISLIYE SHARAM KARO ,KHUD KO GULAAM KENA BANDH KARO and