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जीवन परिचय

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खगोल सागर



निकोलस कोपर्निकस पोलिस मूल के गणितज्ञ, खगोलविद, वैज्ञानिक थे। उन्हें आधुनिक खगोल विज्ञान के संस्थापक के रूप में देखा जाता है। निकोलस अपने कोपर्निकस सिद्धांत के लिए मशहूर हुए। उनका सिद्धांत सूर्य को ब्रह्मांड के केन्द्र पर रखता है। उन्होंने यह भी जान लिया था कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमने के साथ-साथ सूर्य का चक्कर भी काटती है । अब यह सिद्धांत सूर्य केन्द्रीय प्रणाली के रूप में स्थापित है। उनके समकालीन सौरमंडल के लिए टॉलेमी के भूकेन्द्रीय मॉडल में विश्वास करते थे । कोपर्निकस के सूर्य केंद्रीय मॉडल ने लोगों की धारणा को बदल कर रख दिया। उन्होंने दिखाया कि कैसे इस नई प्रणाली से ग्रहों की स्थिति की सही गणना कर सकते हैं। कभी प्रकाशित उनकी किताब 'डी रिवोल्युशनीबस ओर्बियम कोएलेस्टियम' खगोल विज्ञान के क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण कृति समझी जाती है। 


निकोलस कोपर्निकस


निकोलस कोपर्निकस का जन्म 19 फ़रवरी, 1473 को टोरॉन, पोलैंड में हुआ था। टोरॉन, उत्तर मध्य पोलैंड में विस्तुला नदी पर बसा एक शहर है। उनके पिता निकोलस कोपर्निकस सीनियर टोरॉन के संपन्न तांबा व्यापारी थे, और माता बारबरा वाज़ेंरोड भी संपन्न व्यापारी परिवार से थी। निकोलस, कोपर्निकस दंपति की चौथी संतान थे। वह दो भाई और दो बहनों में सबसे छोटे थे। कोपर्निकस का जन्म तकनीकी रूप से जर्मन विरासत में हुआ था। कोपर्निकस जब पैदा हुए, टोरॉन पोलैंड को सौंपा हुआ था। उनकी नागरिकता का प्रतिपादन पोलैंड शासन के अधीन हुआ। कोपरनिकस की प्रथम भाषा जर्मन थी, लेकिन कुछ विद्वानों का विश्वास हैं कि वह पोलिस भी अच्छा बोलते थे। कोपर्निकस जब दस बरस के थे, उनके पिता का निधन हो गया। तब उनके मामा लुकास वाज़ेंरोड ने अभिभावक की भूमिका अदा कर कोपर्निकस की शिक्षा का बीड़ा उठाया। 

1491 में कोपर्निकस ने क्राको विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां उन्होंने पेंटिंग और गणित का अध्ययन किया। उस समय वह खगोल विज्ञान की कक्षाओं में नहीं बैठते थे, बल्कि उनकी रुचि ब्रह्मांड विज्ञान में विकसित हुई थी। इस विषय पर उन्होंने पुस्तकों का संग्रह करना भी शुरू कर दिया था। 1494 में क्राको से स्नातक करने के उपरांत कोपर्निकस टोरॉन लौट आये। वहां उन्होने अपने अंकल की मदद से फ्रोमबोर्क के गिरजाघर में कैनन पद हासिल किया। यह पद आम तौर पर मात्र पुजारियों के लिए ही उपलब्ध था। कोपर्निकस अपना शेष जीवन इस पद पर रहते हुए आराम से काट सकते थे। यह कोपर्निकस के लिए एक भाग्यशाली अवसर था। कैनन पद से मिलने वाली राशि ने उन्हें पढाई को अपने मन मुताबिक जारी रखने का अवसर प्रदान किया था। लेकिन नौकरी ने उनके नियत समय से अधिक की मांग की। अब इस पद पर रहते हुए वह खाली समय के दौरान अपने अकादमिक हितों भर को आगे बढ़ाने में सक्षम थे।

1496 में कोपर्निकस ने अवकाश लिया और इटली की यात्रा की। जहां उन्होंने बोलोग्ना विश्वविद्यालय में एक धार्मिक कानून कार्यक्रम में हिस्सा लिया। वहां उनकी मुलाकात खगोलविद डोमेनिको मारिया नोवारा से हुई। दोनों ने अपने-अपने खगोलीय विचारों और प्रेक्षणों का आदान प्रदान शुरू किया।

1500 में, बोलोग्ना में अपने कानूनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कोपर्निकस व्यावहारिक चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए पडुआ विश्वविद्यालय चले गए। हालांकि डिग्री अर्जित करने के लिहाज से उनके पास समुचित समय नहीं रह गया था। उनके कैनन पद का दो-वर्षीय अवकाश अब समाप्ति की ओर था। 1503 में कोपर्निकस ने फेरारा विश्वविद्यालय में भाग लिया। जहां उन्होंने कैनन कानून परीक्षा की तैयारी की। प्रथम प्रयास में उत्तीर्ण होने के बाद वह शीघ्र अपने वतन पोलैंड लौट आए, और कैनन के रूप में पुनः अपना कार्यभार संभाला। अगले सात वर्षों तक वह यहीं जमे रहे और अपने खाली समय में खगोल विज्ञान का प्रेक्षण करते रहे।

1510 में, कोपर्निकस खगोल विज्ञान का अध्ययन करने फ्रोमबोर्क आ गए। फिर अपना शेष जीवन उन्होंने यहीं बिताया। 24 मई 1543 को फ्राउनबर्ग, पोलैंड में उनका निधन हुआ। 

निकोलस कोपर्निकस के विचारों ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लगभग हर प्रसिद्ध खगोलविद उनके सिद्धांतों से प्रभावित था। गैलीलियो, योहानेस केप्लर, और अन्य खगोलविदों ने अपना योगदान देकर उनके कार्य को आगे बढ़ाया।


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