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जीवन परिचय

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खगोल सागर



एडविन हबल ब्रह्मांड के विस्तार सिद्धांत के प्रवर्तक और परागांगेय खगोल विज्ञान के पितामह थे । हबल बीसवीं सदी के अग्रणी खगोलविदों में से एक थे । उन पर ही हबल स्पेस टेलीस्कोप का नामकरण हुआ था । 1920 के दशक में हमारी अपनी मिल्की वे आकाशगंगा के परे अनगिनत आकाशगंगाओं की उनकी खोज ने ब्रह्मांड की और उसके भीतर हमारे वजूद की समझ में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया था ।


एडविन हबल



एडविन हबल (1889-1953) का जन्म मार्सफिल्ड, मिसौरी में हुआ । अपने पहले जन्मदिन से पहले उन्हें व्हीटॉन, इलिनोइस ले जाया गया । उन्होंने शिकागो के विश्वविद्यालय में गणित और खगोल विज्ञान का अध्ययन किया और 1910 में विज्ञान की स्नातक डिग्री अर्जित की । वें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पहले रोड्स विद्वानों में से एक थे, जहां उन्होंने कानून का अध्ययन किया । प्रथम विश्व युद्ध में संक्षेप सेवा के बाद, वह शिकागो विश्वविद्यालय लौट आए और 1917 में अपनी डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की । माउंट विल्सन वेधशाला में एक पूरे लंबे कैरियर के बाद 28 सितंबर,1953 को सैन मैरिनो, कैलिफोर्निया में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई ।

हबल के समय के ज्यादातर खगोलविदों की सोच थी कि ग्रहों, अनगिनत सितारों और नीहारिकाओं से भरापूरा समूचा ब्रह्मांड मिल्की वे आकाशगंगा के भीतर समाहित है । हमारी आकाशगंगा ही समस्त ब्रह्मांड का पर्याय बन गई थी । 1923 में हबल ने एंड्रोमेडा निहारिका नामक आकाश के एक धुंधले पट्टे पर हूकर दूरबीन का प्रशिक्षण किया । उन्होंने पाया कि एंड्रोमेडा भी हमारी आकाशगंगा की ही तरह सितारों से भरी हुई है, लेकिन केवल मंद तारों से । उन्होंने वहां एक सितारा देखा जो सेफिड चर का था, परिवर्ती चमक के तारों का एक प्रकार, जिसका इस्तेमाल दूरी को मापने के लिए किया जा सकता है । इसकी सहायता से हबल ने निष्कर्ष निकाला कि एंड्रोमेडा निहारिका कोई नजदीकी तारा समूह नहीं बल्कि एक अन्य समूची आकाशगंगा है जिसे अब एंड्रोमेडा आकाशगंगा कहा जाता है । बाद के वर्षों में उन्होंने अन्य नीहारिकाओं के साथ इसी तरह की खोजें की । 1920 के दशक के अंत तक, अधिकाँश खगोलविद आश्वस्त थे कि हमारी मिल्की वे अकेली नहीं वरन ब्रह्मांड की लाखों आकाशगंगाओं में एक थी । यह खोज ब्रम्हांड की समझ की हमारी सोच में बदलाव का एक अहम् मोड़ साबित हुई ।


हबल वर्गीकरण


हबल तो एक कदम आगे चले गए । उस दशक के अंत तक उन्होंने परस्पर तुलना करने लायक पर्याप्त आकाशगंगाओं की खोज कर ली। उन्होंने आकाशगंगाओं को अण्डाकार, सर्पिल और पट्टीदार सर्पिल में वर्गीकृत करने के लिए एक प्रणाली बनाई । इस प्रणाली को हबल ट्यूनिंग फोर्क डायग्राम कहा जाता है जिसके एक विकसित रूप का आज प्रयोग किया जाता है ।

लेकिन सबसे आश्चर्यजनक खोज 46 आकाशगंगाओं के स्पेक्ट्रा के हबल के अपने अध्ययन के परिणामस्वरूप हुई और विशेष रूप से उन आकाशगंगाओं की हमारी अपनी मिल्की वे आकाशगंगा के सापेक्ष डॉप्लर वेग से । हबल ने पाया कि एक दूसरे से अलग आकाशगंगाएं जितनी ज्यादा दूर है वह उतनी ही तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है । इस अवलोकन के आधार पर हबल ने निष्कर्ष निकाला कि ब्रह्मांड समान रूप से फैलता है । कई वैज्ञानिकों ने भी आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के आधार पर इस सिद्धांत को पेश किया था । लेकिन 1929 में प्रकाशित हबल डेटा ने वैज्ञानिक समुदाय को आश्वत करने में मदद की ।

हबल और माउंट विल्सन पर उनके सहयोगी मिल्टन हमसन ने ब्रह्मांड के विस्तार की दर 500 किलोमीटर प्रति सेकंड प्रति मेगापारसेक होने का अनुमान लगाया ( एक मेगापारसेक, या दस लाख पारसेक की एक दूरी लगभग 32.6 लाख प्रकाश वर्ष के बराबर है, तो एक मेगापारसेक दूर की आकाशगंगा की तुलना में दो मेगापारसेक दूर की आकाशगंगा की हमसे दूर होने की गति दोगुनी होगी )। यह अनुमान हबल नियतांक कहलाता है ।

हबल स्पेस टेलीस्कोप

हबल स्पेस टेलीस्कोप को 1990 में शुरू किया गया था, उसके प्रमुख लक्ष्यो में एक हबल नियतांक की सही व्याख्या करनी है । 2001 में, एक टीम ने भूमि आधारित ऑप्टिकल दूरबीनों के साथ साथ, हबल के साथ सुपरनोवा का अध्ययन  कर 72 ± 8 किमी / सेकण्ड/ मेगापारसेक की एक दर स्थापित की । 2006 में, नासा के WMAP उपग्रह के साथ ब्रह्मांडीय सुक्ष्मतरंग पृष्ठभूमि का अध्ययन कर रही एक टीम ने इस माप को सुधार कर 70 किमी / सेकण्ड/ मेगापारसेक किया । हबल दूरबीन की सहायता से यह भी पता चला कि न केवल ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है, विस्तार में तेजी भी है । इस त्वरण के लिए उत्तरदायी रहस्यमय बल को अदृश्य ऊर्जा करार दिया है ।

अंत में, एडविन हबल ने एक दूरबीन के साथ अपने नाम को सार्थक किया और ब्रह्मांड के विषय में हमारी समझ को बदल कर रख दिया । हबल स्पेस टेलीस्कोप के रूप में खोज की उनकी भावना आज भी जीवित है ।