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जीवन परिचय

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इंडो-अमरीकी चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यन 20 वीं सदी के एक मशहूर और प्रतिभाशाली खगोलभौतिकविद् थे। तारकीय विकास सिद्दांत के प्रतिपादन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशेष रूप से, मौत की कगार पर खड़े तारों के श्वेत वामन रूपी अंतिम चरण के अध्ययन में उनकी सराहनीय भूमिका रही है। सन 1983 में उन्हें भौतिकविद् विलियम अल्फ्रेड फॉवलर के साथ नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।


चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यम



चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यन का जन्म 19 अक्टूबर, 1910 को लाहौर, भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था। चंद्रशेखर की माता सीता बालकृष्णन और पिता सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर अय्यर थे। उनके पिता एक भारतीय सरकारी लेखा परीक्षक थे, जिनका काम उत्तर पश्चिमी रेलवे की लेखा परिक्षा करना था, जबकि माता एक अत्यधिक बौद्धिक महिला थी। चंद्रशेखर एक बड़े परिवार के सदस्य थे। उनकी दो बड़ी बहन, तीन छोटे भाई और चार छोटी बहने थी। चंद्रशेखर की आरंभिक पढ़ाई बारह वर्ष की उम्र तक घर पर ही हुई। 1925 में पंद्रह वर्ष की आयु में हिंदू हाई स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। प्रेसिडेंसी कॉलेज मद्रास, भारत में उनकी शिक्षा एक भौतिकविद् के रूप में हुई। 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में सर राल्फ होवेर फॉवलर के अधीनस्थ रहकर पी. एच डी. के विद्यार्थी बने। 1937 में चंद्रशेखर शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय में शामिल हुए, जहां वह 1995 में अपनी मृत्यु तक बने रहे।

सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर बीसवीं सदी के बड़े ताराभौतिकविदों में से एक थे। वह प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने भौतिकी के साथ साथ खगोल विज्ञान का अध्ययन किया था। चंद्रशेखर ने प्रमाणित किया कि एक श्वेत वामन के द्रव्यमान की एक ऊपरी सीमा होती है। यह सीमा, चंद्रशेखर सीमा के रूप में जानी जाती है, जो यह बताती है कि आकार में सूर्य से बड़े सितारे मरणासन्न अवस्था में, या तो विस्फोटित होंगे या ब्लैक होल का रूप धारण करेंगे।

1999 में, उनकी मृत्यु के चार वर्ष बाद, नासा ने चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यन के सम्मान में चंद्रा नामक एक एक्स-रे वेधशाला का शुभारंभ किया। यह वेधशाला विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के एक्स-रे परास में ब्रह्मांड का अध्ययन करती है।


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